1857 की क्रांति कारण एवं नेता
भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम
1857 का जन संग्राम भारत के वायसराय लॉर्ड कैनिंग के कार्यकाल के दौरान 1857 की गर्मियों के दौरान हुआ| 1857 के विद्रोह को एक सैन्य तख्तापलट अथवा भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा भी दी जाती ह| 1857 की क्रांति के प्रमुख केंद्र मेरठ दिल्ली उत्तरी भारत एवं मध्य भारत रहे जबकि दक्षिण भारत बिल्कुल शांत था आइए हम पहले 1857 की क्रांति के कुछ कारणों के बारे में चर्चा करते हैं|
1857 की क्रांति के प्रमुख कारण
- विद्रोह का प्रमुख कारण ब्रिटिश सरकार के प्रति भारतीय लोगों का असंतुष्टपन था| ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने भारतीय लोगों का आर्थिक रूप से बहुत ही बुरी तरीके से शोषण किया| अंग्रेजों ने देश के पारंपरिक ढांचे को खत्म कर दिया जिसमें पहले राजा महाराजा हुआ करते थे| वह अपनी देश की जनता के प्रति हमदर्दी रखते थे, उनसे बहुत ज्यादा मात्रा में कर नहीं वसूलते थे, तथा अकाल जैसी या फिर महामारी जैसी कोई घटना हो तो लगान माफ भी कर देते थ| लेकिन अंग्रेजों ने भारतीय लोगों के साथ दमनकारी नीतियां अपनाई अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए कंपनी ने भारतीय किसानों पर अत्यधिक कर्ज का बोझ डाल दिया, जो किसान लोग कभी भी चुकाने में सक्षम नहीं थे| कई किसानों को अपनी पुश्तैनी जमीन तक बेचनी पड़ी| इसके अलावा स्थानीय छोटे हस्तशिल्प कारखाने धीरे-धीरे बंद कर गए क्योंकि पहले उन्हें राजा महाराजाओं का संरक्षण प्राप्त था लेकिन अब स्थानीय उद्योग ब्रिटेन से आ रहे मशीनों द्वारा बने सामान का मुकाबला नहीं कर सकते थे, जिससे उनका धीरे-धीरे पतन हो गया| जिससे लोगों में अत्यधिक रोष पैदा हो गया|
- दूसरा प्रमुख कारण इस क्रांति का यह रहा की गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने हड़प की नीति अपनाई इस नीति के अनुसार अगर किसी भारतीय राजा का उत्तराधिकारी नहीं हो तो वह है ब्रिटिश शासन के अधीन हो जाएगा तथा गोद लिया हुआ पुत्र राजा नहीं बन सकेगा जिस कारण से स्थानीय राजाओं में भारी मात्रा में असंतोष पैदा हुआ उन्होंने अपने हक के लिए अंग्रेजो के खिलाफ आवाज ऊंची करी
- अंग्रेजों ने भारतीय किसानों से प्राप्त लगान को भारतीय लोगों पर कभी भी खर्च नहीं किया कभी भी किसानों के लिए कोई भी राहत कार्य कदम नहीं उठाए ना ही कोई विकास के लिए कुछ योजनाएं लागू की बल्कि जितना भी उन्हें यहां से कर मिलता वह सब ब्रिटेन भेज दिया जाता था तथा भारतीय बाजारों से कोई भी वस्तुएं खरीदनी हो तो वह इसी लगान का उपयोग करते थे अर्थ अर्थ भारतीय किसानों की ही पूंजी के द्वारा भारतीयों का ही माल खरीदते थे और उसे दुगने दामों में बेचते थे
- ब्रिटिश लोग हमेशा स्वयं को भारतीय लोगों से श्रेष्ठ मानते थे ब्रिटिश सेना में लगभग 87% भारतीय लोग थे लेकिन वह सभी भारतीयों को हीन दृष्टि से देखते थे तथा उनके साथ अभद्र व्यवहार करते थे भारतीय लोगों के लिए सेना में उच्च पदों के लिए कोई स्थान नहीं था
- ब्रिटिश सरकार ने ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार को बढ़ावा दिया जिस कारण से हिंदुओं और मुसलमानों में अपने धर्म के संकट में होने की भावना विकसित हुई अर्थात धार्मिक भावनाओं के आहत होने से हिंदू और मुस्लिम ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हो गए
- ब्रिटिश सरकार के द्वारा 1850 में एक अधिनियम पारित हुआ जिसका नाम धार्मिक विकलांग अधिनियम था इसके अनुसार धर्म परिवर्तन के बाद पुत्र को अपने पिता की संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता था लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करता है तो उसे अपने पिता की संपत्ति से बेदखल कर दिया जाता था इस परंपरागत मान्यता के टूटने के कारण वह ब्रिटिश सरकार से नाराज हो गए
- भारतीय मान्यताओं के अनुसार यात्रा करना पाप था तथा सजा के रूप में उन्हें समाज से बाहर निकाल दिया जाता था लेकिन उसी वक्त ब्रिटिश सरकार ने कानून पारित किया जिसके तहत जरूरत पड़ने पर सैनिकों को समुद्र के बाहर भी भेजा जा सकता था
- 1854 के पोस्ट ऑफिस अधिनियम के पारित होने के बाद सैनिकों की मुफ्त सुविधा को समाप्त कर दिया गया
- 1857 के विद्रोह का एक मुख्य कारण यह भी था की सेना में काम में लिए जाने वाले कारतूस को मुंह से काटना पड़ता था तथा उस समय यह बात सब जगह फैल चुकी थी कि इन कारतूस में गाय एवं सूअर की चर्बी का उपयोग किया गया है जिससे भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई और भारतीय सैनिकों और जनता के बीच सरकार के प्रति बहुत ज्यादा असंतोष फैल गय
1857 की क्रांति किसी एक कारण का परिणाम नहीं था बल्कि है उन पर उक्त सभी कारणों का प्रभाव था जो धीरे-धीरे जनता के मन में है जगह बना चुके थे और एक दिन यह विद्रोह फूट पड़ा|
1857 के विद्रोह की शुरुआत
- 1857 के विद्रोह की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई तथा यह विद्रोह धीरे-धीरे कानपुर बरेली झांसी दिल्ली एवं अवध तक फैल गया इस विद्रोह की शुरुआत सबसे पहले एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई तथा धीरे-धीरे संपूर्ण भारत की जनता भी इसमें शामिल होती गई
- 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने अपने एक अफसर की गोली मारकर हत्या कर दी लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों ने इस विद्रोह को आसानी से दबा लिया तथा 34N.I. बटालियन को भंग कर दिया|
- विद्रोह का व्यापक रूप 10 मई से शुरू हुआ मेरठ में 20 एन. आई. बटालियन ने विद्रोह कर दिया तथा अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियां चलाई तथा उनकी हत्या कर दी गई फिर वहां से एक पैदल टुकड़ी रवाना हुई तथा उन्होंने दिल्ली की तरफ कूच किया 12 मई को दिल्ली पर पहुंचकर सैन्य टुकड़ी ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया तथा मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया तथा शीघ्र ही है विद्रोह लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, झांसी तक फैल गया यह विद्रोह कम से कम 1 साल तक चला तथा अंग्रेजों ने पंजाब से सेना बुलाकर सबसे पहले दिल्ली पर अधिकार किया बहादुर शाह जफर को रंगून जेल भेज दिया गया तथा उनके दो पुत्रों को उनके सामने ही सर में गोली मार दी गई तथा धीरे-धीरे इस विद्रोह को पूर्णता दबा दिया गया|
1857 के विद्रोह की विफलता के कारण
- हालांकि 1857 का विद्रोह देश के काफी हिस्सों तक पहुंच गया लेकिन फिर भी इसे उतना जन समर्थन नहीं मिल सका कई अहम शासकों ने इस विद्रोह में हिस्सा नहीं लिया राजस्थान के राजपूताना, सिंधिया, होल्कर जैसे शासकों ने भी इस विद्रोह का समर्थन नहीं किया तथा दक्षिण भारत इस विद्रोह में पूर्णत शांत रहा| साथ ही अनेक राजाओं ने इस विद्रोह में अंग्रेजों का साथ दिया|
- इस विद्रोह में एक प्रभावी नेतृत्व का अभाव रहा हालांकि अपने-अपने क्षेत्रों में अनेक क्रांतिकारियों ने बखूबी अपना योगदान दिया जैसे नानासाहेब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई| लेकिन फिर भी विद्रोहियों में एक साथ मिलकर काम करने एवं अनुभव की कमी थी तथा यह एक बिना योजना के यह विद्रोह कर रहे थे|
- इसके साथ ही क्रांतिकारियों के पास न तो पर्याप्त धन था ना ही उनके पास आधुनिक हथियार थे जिस कारण से वे अंग्रेजों के द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले आधुनिक हथियारों के सामने कमजोर पड़ गए
- समाज के शिक्षित वर्ग ने इस आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया उनके अनुसार यह एक विद्रोह नहीं बल्कि देश में अशांति के रूप में था
- क्रांतिकारी संपूर्ण देश में एक राष्ट्रीयता की भावना उजागर नहीं कर पाए जिस कारण से कई स्थानीय शासको ने विद्रोह को कुचलने अंग्रेजो की मदद की
- बहादुर शाह जफर के वृद्ध हो जाने के कारण वह विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सके जिससे एक नेतृत्व की कमी महसूस हुई
1857 के विद्रोह के परिणाम
- विद्रोह की समाप्ति के बाद 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया तथा ब्रिटिश शासन लागू कर दिया गया जिससे कि भारत के शासन की शक्ति पूर्णता ब्रिटेन की महारानी के हाथों में आ गई 1858 के इस अधिनियम के तहत एक भारतीय राज्य सचिव की व्यवस्था की गई तथा उसकी सहायता के लिए एक 15 सदस्यीय मंत्रिपरिषद का गठन किया गया जिनमें से 8 को मनोनीत किया जाना था तथा 7 का कोर्ट ऑफ डायरेक्टर द्वारा चुनाव कराया जाना था|
- हड़प की नीति को समाप्त कर दिया गया तथा स्थानीय राजाओं को अपनी पुरानी व्यवस्था एवं अधिकार बहाल करने के अधिकार दिए गए
- गवर्नर जनरल का पद हटाकर उसकी जगह भारत के वायसराय का पद रखा गया सैन्य चौकियों पर यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ाई की जिसके कारण भारतीय एवं अंग्रेजों की संख्या का अनुपात 2 अनुपात एक हो गया
- इस विद्रोह के बाद हिंदू मुसलमानों में एक राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ जिसने बाद में राष्ट्रीय आंदोलन में बहुत ही अच्छा योगदान किया तथा ईसाई धर्म के प्रचार में भी गिरावट आई |
- 1857 की क्रांति के समाप्त होने के बाद मुगल साम्राज्य पूर्णता खत्म हो गया |
हाइलाइट:
- विद्रोह दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था।
- 1857 के विद्रोह की एक प्रमुख विशेषता हिंदू-मुस्लिम एकता थी।
- बहादुर शाह-द्वितीय (जफर) ने सम्राट हिंदुस्तान की उपाधि धारण की। बहादुर शाह दिल्ली में एक प्रतीकात्मक नेता थे। असली नेतृत्व बख्त खान की अध्यक्षता में सैनिकों की एक परिषद के हाथों में था।
- उत्तर-पश्चिम प्रांत और मुजफ्फरनगर और सहारनपुर को छोड़कर सभी स्थानों पर सैन्य विद्रोह के बाद नागरिक विद्रोह हुए।
- भारत का गवर्नर-जनरल विद्रोह के दौरान लॉर्ड कैनिंग था।
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