वैद्युत आवेश तथा क्षैत्र (Electric charge and field)
वैद्युत आवेश (Electric Charge):
परिभाषा : विद्युत आवेश किसी भी पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वह विद्युत एवं चुंबकीय प्रभाव को अनुभव या उत्पन्न करता है |
अर्थात किसी भी आवेशित वस्तु को दूसरी आवेशित वस्तु के नजदीक लाया जाता है तो वह या तो उसे आकर्षित करती है या फिर उसे प्रति कृषित करती है यदि किसी वस्तु पर कोई भी प्रकार का आवेश उपस्थित नहीं है तो उसे अन-आवेशित कहते हैं |
नोट:
- आवेश दो प्रकार का होता है: धन आवेश एवं ऋण आवेश |
- आवेश का SI मात्रक कूलाम होता है|
- CGS पद्धति में आवेश का मात्रक स्थिर विद्युत इकाई (ESU) होता है|
- आवेश की सबसे छोटी इकाई electron का आवेश है|
- समान प्रकृति की आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते है तथा विपरीत प्रकृति के आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते हैं
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| Source: NCERT |
आवेश हमेशा ही इलेक्ट्रॉनों के रूप में एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में स्थानांतरित होता है अर्थात हम कह सकते हैं कि आवेश एक इलेक्ट्रॉन ही है| अगर किसी पदार्थ पर इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है तो वह ऋण आवेशित हो जाता है यदि वह इलेक्ट्रॉन त्याग देने के कारण उस पर इलेक्ट्रॉनों की संख्या घट जाती है तो वह धन आवेशित हो जाता है
चालक (Conductor) एवं कुचालक (Insulator) दोनों प्रकार के पदार्थों को आवेशित किया जा सकता है आप चालक एवं कुचालक के बारे में आगे चलकर इसी अध्याय में पढ़ेंगे
हम आवेश को एक इस प्रकार एक बहुत ही आसान तरीके से भी सीख सकते हैं क्योंकि हमें पता है कि किसी भी पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों एवं प्रोटोन की संख्या समान होती है इसलिए अगर उस पदार्थ में से इलेक्ट्रॉन निकाल लिए जाए तो उसमें पर प्रोटोन की संख्या इलेक्ट्रॉनों से ज्यादा होगी अर्थात उस पदार्थ में धन आवेश की मात्रा ऋण आवेश के मुकाबले ज्यादा होगी इसलिए वह पदार्थ धन आवेशित होगा ठीक उसी प्रकार यदि किसी पदार्थ को इलेक्ट्रॉन दे दिए जाए तो उस पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रोटोन की संख्या की तुलना में ज्यादा होगी जिससे कि वह पदार्थ ऋण आवेशित हो जाएगा तथा उसी प्रकार जब इलेक्ट्रॉनों एवं प्रोटोन की संख्या बराबर होती है तो वह पदार्थ उदासीन कहलाता है
पदार्थ को आवेशित करने की विधियां (Methods of charging):
पदार्थ को मुख्यतः तीन प्रकार से आवेशित किया जाता है: घर्षण द्वारा, प्रेरण द्वारा, एवं चालन द्वारा |
घर्षण द्वारा (By friction):
जब दो उदासीन पदार्थों को आपस में रगड़ा जाता है तो उन दोनों पदार्थों में इलेक्ट्रॉनों का एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में स्थानांतरण होता है जिस वजह से एक पदार्थ धन आवेशित एवं दूसरा पदार्थ ऋण आवेशित हो जाता है घर्षण द्वारा आवेदन करने में हमेशा दोनों पदार्थों में विपरीत आवेश ही आता है|
प्रेरण द्वारा आवेशन (By induction):
किसी भी उदासीन पदार्थ को प्रेरण द्वारा आवेदन करने के लिए हमेशा एक दूसरे आवेशित पदार्थ की आवश्यकता होती है अगर हमें उस उदासीन पदार्थ को ऋण आवेशित करना हो तो हमें धन आवेशित पदार्थ की आवश्यकता होगी और अगर उस उदासीन पदार्थ को हमें धन आवेशित करना हो तो हमें एक ऋण आवेशित पदार्थ की आवश्यकता होगी|
इसकी प्रक्रिया इस प्रकार है:
जब किसी माना धन आवेशित पदार्थ को उदासीन पदार्थ के नजदीक लाया जाता है तो उदासीन पदार्थ में उपस्थित इलेक्ट्रॉन उस धन आवेशित पदार्थ की तरफ एकत्रित हो जाते हैं तथा जिस कारण से उस पदार्थ में दूसरी तरफ धन आवेश आ जाता है अब हम उस प्रेरित हुए धन आवेश को भू संपर्क कर देते हैं जिससे कि सारा धन आवेश भूमि में चला जाता है और उस पदार्थ पर सिर्फ ऋण आवेश रह जाता है अब हम उस धन आवेशित पदार्थ को दूर हटा लेते हैं तथा अब वह उदासीन पदार्थ ऋण आवेशित हो चुका है|
| SOURCE: NCERT |
ठीक इसी प्रकार अगर हमें उस उदासीन पदार्थ को धन आवेशित करना हो तो हम एक ऋण आवेशित पदार्थ को उसके पास लेकर आएंगे जिससे कि उस पदार्थ में उपस्थित इलेक्ट्रॉन दूसरी तरफ एकत्रित हो जाएंगे (प्रतिकर्षण के कारण ) तथा ऋण आवेश इस पदार्थ की तरफ इलेक्ट्रॉनों की कमी के कारण धन आवेश आ जाता है अब हम ठीक उसी प्रकार उस ऋण आवेश को भूमिगत कर देते हैं जिससे कि उदासीन पदार्थ पर सिर्फ धन आवेश रह जाता है उसके बाद हम पहले वाले ऋण आवेशित पदार्थ को दूर हटा लेते हैं|
चालन द्वारा आवेशन(by Contact)
किसी उदासीन पदार्थ को चालन विधि द्वारा आवेशित करने के लिए हमें एक उदासीन चालक पदार्थ एवं एक आवेशित चालक पदार्थ की आवश्यकता होती है| जब हम आवेशित चालक पदार्थ को अन आवेशित चालक पदार्थ के साथ संपर्क में लाते हैं तब इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह शुरू हो जाता है और यह प्रवाह तब तक होता है जब तक दोनों पदार्थों का विद्युत विभव समान ना हो जाए इसके बारे में आप अगले अध्याय में पढ़ेंगे इस प्रक्रिया में उदासीन पदार्थ पर भी वही आवेश आएगा जो आवेश चालक पदार्थ पर था|
आवेश के गुणधर्म (Properties of Charge):
यदि दो आवेशित वस्तु के बीच की दूरी उनकी साइज की तुलना में बहुत कम हो तो उन्हें बिंदु आवेश मान लिया जाता है |
आवेश के मुख्य 3 गुण होते हैं:
1. आवेशो की योज्यता:
यदि किसी निकाय में 2 बिंदु आवेश q1 एवं q2 हो तो निकाय का कुल आवेश q1 एवं q2 के बीजगणितीय योग के बराबर होता है अर्थात आवेशों को वास्तविक संख्याओं की भांति जोड़ा जा सकता है ।
यदि किसी निकाय में 10 आवेश q1, q2, q3,.......,qn हो तो निकाय का कुल आवेश q1+q2+q3+.....+qn होता है लेकिन यहां यह याद रखना आवश्यक है की आवेशो का योग करते समय उपयुक्त चिन्ह अवश्य लगाएं।
जैसे: किसी निकाय मे 5 आवेश +1, -2, -3, +4, व +5 है तो इस निकाय का कुल आवेश (+1)+(-2)+(-3)+(+4)+(+5) = +5 होगा।
2. वैद्युत आवेश संरक्षित है:
3. आवेश का क्वांटमीकरण:
- इलैक्ट्रॉन को आवेश की सबसे छोटी इकाई माना जाता है|
- इलेक्ट्रॉन का आवेश = 1.60217662 × 10-19 coulombs
- एक कूलाम आवेश में लगभग 6.25 × 10^18 इलेक्ट्रॉन होते है।
कूलाम का नियम (Coulomb's law):
कूलाम के नियम के अनुसार 2 बिंदु आवेशों के मध्य लगने वाला आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल उन दोनोंं आवेशों के परिमाण के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्गग के व्युत्क्रमानुपाती होता है|
अतः अगर दो बिंदु आवेश q1 एवं q2 के बीच निर्वात में दूरी r है इनके बीच लगने वालेे आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल का मान है:
- अतः यदि दो एक कूलाम 1C के आवेश 1m की दूरी पर रखे जाएं तो उनके बीच लगने वाला बल 9.0x109N होगा
- जैसा कि हम देख सकते हैं कि इतना बड़ा बल व्यावहारिक कार्यों के लिए बहुत ही अधिक है इसलिए 1C आवेश बहुत ही बड़ा मात्रक है इसकी जगह हम व्यवहार में छोटे मात्र को जैसे 1mC अथवा 1 um का उपयोग करते हैं
- K को प्राय k = 1/4πε0 लिखते हैं जहां e निर्वात की विद्युतशीलता अथवा परावैद्युतांक कहलाता है| इसका मान ε0 = 8.85×10−12 C−2/Nm2
- 1C आवेश वह है जो निर्वात में 1 मीटर की दूरी पर रखें दूसरे एक कूलाम आवेश को 9x109N बल से प्रतिकृषित करें|
बहुल आवेशों के बीच बल (Force by multiple charges):
विद्युत क्षेत्र (Electric Field):
प्रत्येक आवेश अपने चारों ओर एक काल्पनिक क्षेत्र उत्पन्न करता है जिसमें किसी दूसरे आवेश को लाने पर वह आवेश कूलाम नियम के अनुसार आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल अनुभव करेगा जिसे हम विद्युत क्षेत्र कहते हैं |
माना एक बिंदु आवेश Q मूल बिंदु पर रखा है अब एक अन्य बिंदु आवेश q बिंदु P पर रखा जाए जिसकी मूल बिंदु से दूरी r हो तो आवेश Q, q पर बल लगाएगा। आवेश Q के कारण बिंदु r पर उत्पन्न विद्युत क्षेत्र का मान निम्न है :
अब बिंदु P पर रखे आवेश q एवं मूल बिंदु पर रखे आवेश Q के बीच लगने वाला कूलाम बल निम्न है
समीकरण (1) एवं (2) से
- उपरोक्त समीकरण से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं की यदि आवेश q एकांक है तो आवेश Q के कारण विद्युत क्षेत्र का मान इसके द्वारा आरोपित बल के बराबर होता है|
- विद्युत क्षेत्र एक सदिश राशि है जिस का मात्रक न्यूटन/मीटर (N/m) है|
- इसकी एक शर्त यह है कि आवेश Q अपनी स्थिति पर स्थिर होना चाहिए लेकिन आवेश q भी श्रोत आवेश पर बल आरोपित करेगा जिसे आवेश Q गति करने की प्रवृत्ति दर्शएगा इसके लिए हम q को बहुत ही छोटा लेंगे, वो भी सिर्फ स्रोत आवेश Q के कारण विद्युत क्षेत्र का परीक्षण करने के लिए; इसलिए हम इसे परीक्षण आवेश भी कहते हैं|
- विद्युत क्षेत्र आवेश q पर निर्भर नहीं है |
- धन आवेश के कारण विद्युत क्षेत्र की दिशा आवेश के बाहर की ओर उन्मुख होती है तथा यदि स्रोत आवेश ऋणआत्मक है तो विद्युत क्षेत्र की दिशा आवेश की ओर होती है |
- स्पष्ट है कि विद्युत क्षेत्र का मान स्रोत आवेश से परीक्षण आवेश की दूरी पर निर्भर करता है अर्थात यदि श्रोत आवेश से r दूरी पर स्थित किसी बिंदु पर चाहे वह किसी भी दिशा में हो वहां विद्युत क्षेत्र का मान समान होगा।
आवेशों के निकाय के कारण विद्युत क्षेत्र (Electric Field due to a System of Charges):
माना एक आवेशों का निकाय है जिसमें अनेक आवेश q1, q2, q3,....., qn क्यों है जिनके मूल बिंदु O के सापेक्ष स्थिति सदिश कर्म से r1, r2, r3,....., rn है| तथा यह सभी आवेश अपनी स्थिति पर स्थित है अब हम इन सभी आवेशों के कारण हैं दिकस्थान में स्थित किसी बिंदु P पर विद्युत क्षेत्र की गणना करेंगे इसके लिए हम बिंदु P पर एक परीक्षण आवेश (एकाङ्क धनावेश) q रखेंगे और बिंदु P का स्थिति सदिश r है|
अब r1 पर स्थित आवेश q1 के कारण r पर स्थित परीक्षण आवेश q पर विद्युत क्षेत्र का मान निम्नलिखित है जहां r1p आवेश q1 तथा P के बीच की दूरी है:
ठीक इसी प्रकार r2 पर स्थित आवेश q2 के कारण r पर स्थित परीक्षण आवेश पर विद्युत क्षेत्र का मान निम्नलिखित है :
अब अध्यारोपण के सिद्धांत से r पर स्थित परीक्षण आवेश पर विद्युत क्षेत्र का मान निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है:
विद्युत क्षेत्र रेखाएं (Electric Field Lines):
विद्युत क्षेत्र रेखाओं की मदद से हम विद्युत क्षेत्र को और भी आसान तरीके से समझ सकते हैं| विद्युत क्षेत्र रेखाएं काल्पनिक रेखाएं होती है मूल बिंदु पर स्थित किसी स्रोत आवेश (माना धनात्मक) के कारण आकाश में स्थित किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र के परिमाण को दर्शाने के लिए हम एक सदिश रेखा खींचगे, जिसकी लंबाई विद्युत क्षेत्र के परिमाण को दर्शाएगी तथा सदिश की दिशा विद्युत क्षेत्र की दिशा के अनुदेश होगी, जैसा की चित्र में दर्शाया गया है:
स्रोत आवेश के निकट विद्युत क्षेत्र रेखाओं का घनत्व अधिक है अर्थात यहां विद्युत क्षेत्र का परिमाण अधिक होगा तथा जैसे-जैसे स्रोत आवेश से दूर जाते हैं वैसे वैसे विद्युत क्षेत्र रेखाओं का घनत्व (Density) कम होता जाता है अर्थात विद्युत क्षेत्र का परिमाण या तीव्रता कम हो जाती है| हालांकि हम जितनी चाहे विद्युत क्षेत्र रेखाएं खींच सकते हैं लेकिन यहां रेखाओं की संख्या महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि यहां अनंत रेखाएं खींची जा सकती है महत्वपूर्ण यह है कि विभिन्न क्षेत्रों में विद्युत क्षेत्र रेखाओं का आपेक्षिक घनत्व क्या है|
विद्युत क्षेत्र रेखाओं के गुण (Properties of Electric Field Lines):
- धनात्मक स्रोत आवेश के लिए विद्युत क्षेत्र रेखाएं हमेशा बाहर की ओर निकलती है तथा अनंत तक जाती है तथा ऋण आत्मक स्रोत आवेश के लिए विद्युत क्षेत्र रेखाएं अनंत से आती है तथा स्रोत आवेश की ओर उनकी दिशा होती है|
- यदि दो आवेश एक धनात्मक एक एवं ऋण आत्मक हो तो विद्युत क्षेत्र रेखाएं धन आवेश से प्रारंभ होकर ऋण आवेश पर समाप्त होती है|
- कोई भी दो विद्युत क्षेत्र रेखाएं आपस में किसी को काटती (Cross) नहीं है क्योंकि यदि अगर वह ऐसा करती है तो वहां विद्युत क्षेत्र की दो दिशाएं होगी क्योंकि विद्युत क्षेत्र रेखाओं की दिशा ही उस बिंदु पर स्रोत आवेश के कारण विद्युत क्षेत्र की दिशा होती है जोकि संभव नहीं है|
- विद्युत क्षेत्र रेखाएं चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की तरह कभी भी बंद लूप (Closed loop) नहीं बनाती है|
विद्युत फ्लक्स (Electric Flux):
द्युत फ्लक्स ∆φ का मान निम्न है:

वैद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole) :
विद्युत द्विध्रुव के कारण विद्युत क्षेत्र (Electric Field due to a Dipole):
अक्ष पर स्थित बिंदुओं के लिए विद्युत क्षेत्र (Electric Field at a point lying on axis of Dipole):





विषुवतीय तल पर स्थित किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र (Electric Field at a point lying on horizontal line passing through the centre of Dipole) :





एक समान विद्युत क्षेत्र के अंदर द्विध्रुव (Electric Dipole in a Uniform Electric Field):




सतत आवेश वितरण ( Continuous Charge Distribution ):
अब तक हमने आवेश उनको अलग अलग रखकर उनके कारण होने वाले विभिन्न प्रभावों का अध्ययन किया था लेकिन व्यावहारिक रूप में ऐसा करना मुमकिन नहीं है इसलिए हमें आवेशों को सतत रूप में वितरित मानकर उनका अध्ययन करना होता है। जैसे किसी सतह पर 1010 कूलाम आवेश हो तो हम वहां उपस्थित प्रत्येक आवेश के कारण विद्युत क्षेत्र निकालकर फिर उनका अध्यारोपण के सिद्धांत से परिणामी निकालना बहुत ही जटिल कार्य है। इसलिए हम उन आवेशों के समूह को एक साथ अध्ययन करते हैं।
अगर यदि किसी छोटे से स्थान पर अनेक आवेश उपस्थित हो तो हम उस आवेश वितरण को सतत आवेश वितरण कहते हैं तथा इस आवेश वितरण को अच्छी तरीके से अध्ययन करने के लिए हम एक शब्द "आवेश घनत्व" को परिभाषित करेंगे।
यह तीन प्रकार का होता है:
1. तार जैसी लंबी संरचना वाले पदार्थों के लिए हम रेखीय आवेश घनत्व,
2. एक द्विविमीय आकृति वाले पदार्थ के लिए पृष्ठीय आवेश घनत्व तथा
3. त्रिविमीय आकृति के लिए हम आयतन आवेश घनत्व शब्द का प्रयोग करेंगे।
रेखीय आवेश घनत्व ( Linear Charge Density):
माना एक तार जिसकी लंबाई l है के किसी छोटे से भाग जिसकी लंबाई ∆l है पर उपस्थित आवेश ∆Q है तो तार का रेखिक आवेश घनत्व λ इस प्रकार है
λ = ∆Q/∆l

पृष्ठीय आवेश घनत्व ( Surface Charge Density ):
यदि S क्षेत्रफल वाले किसी पृष्ठ के सूक्ष्म भाग ∆S पर उपस्थित आवेश ∆Q है तो उस पृष्ठ का पृष्ठीय आवेश घनत्व σ निम्न प्रकार है
σ = ∆Q/∆S

आयतन आवेश घनत्व ( Volume Charge Density ):
यदि किसी त्रिविमीय संरचना के छोटे से भाग जिसका आयतन ∆V है पर उपस्थित आवेश ∆Q है तो उस संपूर्ण संरचना का आयतन आवेश घनत्व ρ निम्न होगा :
ρ =∆Q/∆V

आवेश घनत्व निकालने का सबसे बड़ा कारण यह है कि हम कितनी भी बड़ी एक विमीय, द्विविमीय या त्रिविमीय संरचना जिसका आवेश वितरण सतत हो तो हम एक सूक्ष्म भाग का आवेश ज्ञात करके उसके कारण विद्युत क्षेत्र निकाल सकते हैं तथा संपूर्ण संरचना के कारण विद्युत क्षेत्र निकालने के लिए हम उसका समाकलन कर देते हैं
गाउस का नियम ( Gauss's Law ):
कथन : " गाउस के नियम के अनुसार किसी बंद पृष्ठ S से गुजरने वाला विद्युत फ्लक्स ( Φ ) = ΣQ/ε होता है "
गाउस के नियम का सत्यापन
माना हमें एक बंद पृष्ठ वाले गोले S जिसकी त्रिज्या r हो, के केंद्र पर रखे आवेश Q के कारण निकलने वाले विद्युत फ्लक्स का मान ज्ञात करना है
इसके लिए हम गोले के पृष्ठ पर एक सूक्ष्म भाग ∆S की कल्पना करते हैं जिस पर विद्युत फ्लक्स निम्न प्रकार होगा
∆Φ= E∆S
यहां E का मान निम्नलिखित है
E= Q/(4𝝅εr2)
Now 
अब हमें संपूर्ण पृष्ठ से निर्गत होने वाले वैद्युत फ्लक्स का मान निकालना है इसके लिए हम सुक्ष्म भाग ∆S से निकलने वाले विद्युत फ्लक्स का समाकलन करेंगे

जो कि गाउस के नियम को सत्य सिद्ध करता है|
गाउस के नियम की विशेषताएं
- गाउस का नियम प्रत्येक बंद पृष्ठ वाले क्षेत्र पर लागू होता है चाहे उसकी आकृति कैसी भी हो
- गाउस के नियम के अनुसार ΣQ बंद पृष्ठ के अंदर उपस्थित सभी आवेशों का योग होता है यह उन आवेशों की स्थिति पर निर्भर nahi करता है वे उस बंद पृष्ठ में कहीं भी स्थित हो सकते हैं
- गाउस नियम के अनुप्रयोग में चुने गए बंद पृष्ठ को गोसीय पृष्ठ भी कहते हैं
गाउस नियम के अनुप्रयोग
गाउस नियम के प्रयोग द्वारा हम अनेक सतत एवं सममित आवेश विन्यासओं के लिए विद्युत क्षेत्र का मान आसानी से ज्ञात कर सकते हैं आइए देखते हैं हम गाउस के नियम किस प्रकार उपयोग में लेते हैं
अनंत लंबाई वाले एक समान आवेशित सीधे तार के कारण विद्युत क्षेत्र

माना एक अनंत लंबाई का तार है, इसके चारों तरफ एक बंद पृष्ठ की कल्पना करते हैं जिसकी आकृति बेलनाकार है और इस बेलन की त्रिज्या r हे तथा बेलन की लंबाई l है तब इस l लंबाई के तार का कुल आवेश है
Q=λl ( सतत रेखिक आवेश घनत्व की परिभाषा से )
तथा गाउस वक्र पृष्ठ से गुजरने वाले विद्युत फ्लक्स का मान निम्नलिखित है
Φ=E×2πrl -----eq. (1.) ( विद्युत फ्लक्स की परिभाषा से )
अब गाउस के नियम अनुसार
Φ=λl/ε ----- eq. (2.)
अतः समीकरण (1) एवं (2) से
E×2πrl = λl/ε
E= λ/2πεr
यदि तार पर आवेश धन आवेश हो तो E की दिशा बहिर्मुखी है, यदि तार पर आवेश ऋण आवेश हो तो E की दिशा अंतर्मुखी होती है।
एक समान आवेशित अनन्त समतल चादर के कारण विद्युत क्षेत्र:
माना एक अनंत समतल चादर जिस पर एक समान प्रष्ठीय आवेश घनत्व σ है, के चारों तरफ एक गाउसीय पृष्ठ की कल्पना करते हैं
चादर के दोनों तरफ से निकलने वाले विद्युत फ्लक्स का मान है
Φ=2 EA ----(१) ( विद्युत फ्लक्स की परिभाषा से )
चादर का कुल आवेश है
Q=σA ( सतत पृष्ठीय आवेश घनत्व की परिभाषा से)
जबकि गाऊस के नियमानुसार
Φ= σA/ε -------(२)
समीकरण (1) एवं (2) से
2 EA = σA/ε
E = σ/2ε
अतः अनंत लंबाई वाले समतल चादर के कारण विद्युत क्षेत्र का मान निम्नलिखित है:
E = σ/2ε
एक समान आवेशित पतले खोखले गोले के कारण विद्युत क्षेत्र:
माना एक R त्रिज्या का खोखला गोला है जिस पर एक समान पृष्ठीय आवेश घनत्व σ है तथा हमें गोले के केंद्र से r दूरी पर विद्युत क्षेत्र का मान निकालना है आइए हम देखते हैं गाउस के नियम के अनुप्रयोग से हम यह कैसे करते हैं|
गोले के कारण विद्युत क्षेत्र निकालते समय हमें निम्नलिखित तीन स्थितियां प्राप्त होती है|
गोले के बाहर विद्युत क्षेत्र ( जब r>>R ) :

एक r त्रिज्या के गाउसीय पृष्ठ की कल्पना करते हैं जिसके अंदर आवेश का मान वही है जो गोले की सतह पर स्थित संपूर्ण आवेश का मान है
अत: Q= σ × 4 π R2 ( आयतन आवेश घनत्व की परिभाषा से )
क्योंकि r>>R.
गोले के बाहर किसी बिंदु जो r दूरी पर स्थित है पर हमें वैद्युत क्षेत्र निकालना है
गोले से निकलने वाले विद्युत फ्लक्स का मान निम्नलिखित है
Φ=E×4π r2
जबकि गाउस के नियम के अनुसार
Φ=σ×4πR2/ε
अतः
E×4π r2 = σ×4πR2/ε
E = σR2/εr2
E = q/4πε r2 --------(१)
यहा q = 4 πR2σ गोले के खॊल पर कुल आवेश है।
गोले के पृष्ठ पर विद्युत क्षेत्र (r = R):
समीकरण (१) मे r = R रखने पर
E = q/4πεR2
गोले के भीतर विद्युत क्षेत्र

हम एक r त्रिज्या वाले का गाउसीय पृष्ठ की कल्पना करते हैं जिसके कारण विद्युत फ्लक्स का मान शून्य है क्योंकि इस गाउसीय पृष्ठ के अंदर कोई भी आवेश विद्यमान नहीं है क्योंकि संपूर्ण आवेश गोले के पृष्ठ पर एक समान रूप से वितरित है इसलिए गोले के भीतर किसी भी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र का मान शून्य होगा।
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ReplyDeleteGreat content 👌👌
ReplyDeleteThanku so much
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