Physical Geography of India Peninsular plateau, coastal plains, Islands - भारत की भौगोलिक स्थितिः प्रायद्वीपीय पठार, तटीय समूह, द्वीप समूह

 

Physical Geography of India Peninsular plateau, coastal plains, Islands - भारत की भौगोलिक स्थितिः प्रायद्वीपीय पठार, तटीय समूह, द्वीप समूह

भारत की भौगोलिक स्थितिः प्रायद्वीपीय पठार, तटीय समूह, द्वीप समूह 

(Physical Geography of India Peninsular plateau, coastal plains, Islands)

प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular plateau)

  • प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण गोंडवाना भूखंड के टूटने और प्रवाह के कारण हुआ है और इसलिए यह सबसे प्राचीन भूखंड का भाग है। यह भारत में सबसे प्राचीन और स्थायी भूखंडों में से एक है।
  • यह पुरानी क्रिस्टलीय, आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों से निर्मित पठार है।
  • यह एक असमान त्रिभुजाकार संरचना है जोकि उत्तर-पश्चिम में दिल्ली पहाड़ियां, पूर्व में राजमहल पहाड़ियां, पश्चिम में गिर की पहाड़ियां, और दक्षिण में कार्डामम (इलायची) पहाड़ियों में फैली है।
  • इस भूखंड की प्रमुख स्थलाकृतिक विशेषताएं हैं – ब्लॉक पर्वत, रिफ्ट घाटियां, स्कंध पर्वत, नग्न चट्टानी सरंचना, टीलेदार पहाड़ियों की श्रेणियां और दीवारनुमा क्वार्टज़ाइट डाइक्स हैं जो जल संग्रहण के लिए प्राकृतिक स्थान प्रदान करती हैं।
  • क्रस्ट में दरार आने और उसके टूटने के कारण यह कई बार उत्थान और पतन की क्रिया से होकर गुजरा है।
  • स्थलाकृतिक विशेषताओं के आधार पर प्रायद्वीपीय पठार को मुख्य तीन भागों में बांटा जा सकता है –
  • दक्कन का पठार
  • मध्य उच्च-भूमि
  • उत्तर-पूर्वी पठार

दक्कन का पठार (Deccan Plateau)

  • दक्कन का पठार एक त्रिभुजाकार भूखंड है जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
  • इसकी पश्चिमी सीमा पर पश्चिमी घाट, पूर्व दिशा में पूर्वी घाट और उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में सतपुड़ा, मैकाले और महादेव की पहाड़ियां हैं।
  • उत्तर-पूर्व दिशा में कर्बी-एंगलांग पठार और उत्तर साचर पहाड़ियों को प्रायद्वीपीय पठार के एक विस्तार के रूप में माना जाता है।
  • पश्चिम में दक्कन के पठार की ऊंचाई अधिक है और पूर्व दिशा की ओर यह कम होती जाती है।
  • पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट दक्कन पठार की प्रमुख श्रृंखलाएं हैं, इन दोनों के बीच के प्रमुख अंतर को निम्नलिखित तालिका में दिखाया गया हैः

क्रम

पश्चिमी घाट

पूर्वी घाट

1.

ये निरंतर हैं और केवल दर्रों के द्वारा ही पास किए जा सकते हैं।

ये निरंतर और समान नहीं हैं। 

2.

औसत ऊंचाई – (900 – 1600 मीटर)

औसत ऊंचाई – 600 मीटर

3.

ऊंचाई उत्तर से दक्षिण की ओर घटती जाती है।

ऊंचाई का कोई सामान्य पैटर्न नहीं है।

4.

महत्वपूर्ण पहाड़ियाँ – नीलगिरी, अन्नामलाई, कार्डामम, बाबुबुदन आदि।

महत्वपूर्ण पहाड़ियाँ – जावेदी, पालकोंडा, नल्लामला, महेन्द्रगिरी आदि।

5.

महत्वपूर्ण चोटियां – अनैमुदी (सर्वोच्च), डोडाबेटा आदि।

महत्वपूर्ण चोटियां – महेन्द्रगिरी (सर्वोच्च), ऊटी, कोडकनाल आदि।

6.

अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियों का जन्म यहां से हुआ है और यह पश्चिम और पूर्व में बहने वाली नदियों के मध्य जल विभाजक का कार्य करती है।

ये महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदी घाटियों द्वारा विभाजित है जो कि बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

मध्य उच्चभूमि 

  • मध्य उच्चभूमि नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का भाग है जिसमें उत्तर में मालवा का पठार, दक्षिण में विंध्य पर्वत श्रृंखला और उत्तर-पश्चिम में अरावली पहाड़ियों का विस्तार है।
  • मध्य उच्चभूमि पश्चिम में विस्तृत (चौड़ी) और पूर्व में संकीर्ण (पतली) है।
  • बुंदेलखंड, बघेलखंड, छोटानागपुर जैसे पठार मध्य उच्चभूमि के पूर्वी विस्तार का निर्माण करते हैं।
  • पर्वतों की सामान्य ऊंचाई 700-1000 मीटर है और ढाल उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में है।
  • अपने भूगर्भिक इतिहास में यह क्षेत्र कई रूपांतरित प्रक्रियाओं से होकर गुजरा है जिसकी पुष्टि रूपांतरित चट्टानों जैसे मार्बल, स्लेट, नीस आदि की उपस्थिति से की जा सकती है।
  • इस क्षेत्र में अधिकांश पर्वत श्रृंखलाएं अवशिष्ट पर्वतों के उदाहरणों हैं जो कि अत्यधिक उघड़ी हुई हैं और असतत श्रृंखलाओं का निर्माण करती हैं (उदाहरण: सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला)।

उत्तर-पूर्वी पठार

  • यह मुख्य प्रायद्वीपीय पठार का एक विस्तार है और ऐसा माना जाता है कि हिमालय के जन्म के समय इंडियन प्लेट की उत्तरी-पूर्वी गति से पड़े बल के कारण दो भागों के मध्य एक बहुत बड़ी दरार पैदा हो गई जो बाद में नदियों की निक्षेपात्मक क्रियाओं द्वारा भर गई।
  • इस क्षेत्र में कई पठार जैसे मेघालय पठार, कर्बी एंगलांग पठार आदि हैं।
  • यह पठार खनिज संसाधनों से भरपूर हैं और यहां दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से अधिकतम वर्षा होती है।
  • महत्वपूर्ण पहाड़ियां – खासी, गारो, जंयतिया आदि।

भारतीय मरुस्थल (Indian Desert)

  • महान भारतीय मरूस्थल(Indian Desert) देश के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है।
  • इस क्षेत्र में वर्षभर में 15 सेमी से भी कम वर्षा होती है, परिणामस्वरूप यहाँ की जलवायु शुष्क और वनस्पतिक आच्छादन्न निम्न है – इसलिए इस रेगिस्तानी क्षेत्र को मरुस्थल भी कहा जाता है।
  • प्रमुख रेगिस्तानी विशेषताएं – मशरूम चट्टानें, विस्थापित टीले और ओएसिस हैं।
  • यह क्षैतिज ड्यून्स और बारकन्स के साथ लहरदार स्थलाकृति भूमि है।
  • इस क्षेत्र में अधिकांश नदियां क्षणिक हैं। उदाहरण: लूनी
  • निम्न वर्षण और अधिक वाष्पीकरण इस क्षेत्र को जल न्यून क्षेत्र बनाता है।
  • रेगिस्तान को दो भागों में बांटा जा सकता हैः सिंध की ओर ढलान वाला उत्तरी क्षेत्र और दक्षिण की ओर कच्छ का रन।

तटीय मैदान (Coastal Plains)

  • प्रायद्वीपीय पठार तीन दिशाओं से समुद्री जल से घिरा हैः दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर।
  • देश की मुख्य भूमि की तटरेखा की लंबाई 6100 किलोमीटर है और देश की कुल भौगोलिक तटरेखा की लंबाई (द्वीपों सहित7517 किलोमीटर है।
  • स्थिति और सक्रिय भौगोलिक रूपांतरण प्रक्रियाओं के आधार पर, इसे मुख्यत: दो भागों में बांटा जा सकता हैः पश्चिमी तटीय मैदान और पूर्वी तटीय मैदान।

क्रम

पश्चिमी तटीय मैदान

पूर्वी तटीय मैदान

1.

यह जलमग्न तटीय मैदान का उदाहरण है।

यह उत्थान तटीय मैदान का उदाहरण है।

2.

पश्चिमी तटीय मैदान पतला है।

पूर्वी तटीय मैदान का चौड़ा है।

3.

यह काठियावाड़ तट, कोंकण तट और मालाबार तट में विभाजित है।

यह उत्तर में उत्तरी सरकार और दक्षिण में कोरोमंडल तट में विभाजित है।

4.

यहां गिरने वाली नदियां डेल्टा का निर्माण नहीं करती हैं।

यहां सुविकसित डेल्टा देखे जा सकते हैं – कृष्णा और गोदावरी डेल्टा।

5.

बंदरगाहों के निर्माण के लिए प्राकृतिक स्थिति प्रदान करती है। जैसे जे.एन.पी.टी., मुंबई।

इस तटीय मैदान में अधिकांश बंदरगाह कृत्रिम (मानव-निर्मित) हैं। उदाहरण- चेन्नई बंदरगाह।

द्वीप समूह (Group of Islands)

  • देश की मुख्यभूमि के विस्तृत भौतिक प्रतिरूपों के अतिरिक्त, प्रायद्वीपीय पठार के दोनों भाग में दो प्रमुख द्वीप समूह स्थित हैं।
  • द्वीप समूह मछली पकड़ने और बंदरगाह क्रियाओं के लिए अनुकूल स्थितियां प्रदान करते हैं।
  • यद्यपि भारतीय सीमाक्षेत्र में 4000 से अधिक द्वीप हैं तथापि अंडमान और निकोबार तथा लक्षद्वीप समूह दो प्रमुख द्वीप समूह हैं।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Andamaan and Nicobar Island Groups)

  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली द्वीपीय श्रृंखला है।
  • इस द्वीप समूह का आकार बड़ा है और इनकी संख्या अधिक और बिखरे हुए हैं।
  • ये द्वीप समुद्र में जलमग्न पर्वतों के उभरे हुए भाग हैं।
  • इस संपूर्ण द्वीप समूह को दो भागों में बांट सकते हैं- उत्तर में अंडमान और दक्षिण में निकोबार। ये दोनों द्वीप दस डिग्री चैनल द्वारा अलग होते हैं।
  • कई छोटे द्वीपों का जन्म ज्वालामुखी क्रिया से हुआ है और भारत में स्थित एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी बैरन द्वीप इसी द्वीप समूह में स्थित है।
  • दक्षिणी अंडमान और लिटिल अंडमान के मध्य डुंकन मार्ग स्थित है।
  • महत्वपूर्ण चोटियांसैडल पीक, उत्तरी अंडमान (738 मीटर), मांउट डिवोलो, मध्य अंडमान (515 मीटर), मांउट कोयोब, दक्षिणी अंडमान (460 मीटर), माउंट थुइलर, ग्रेट निकोबार (642 मीटर).
  • तटरेखा में कुछ कोरल निक्षेप है और सुंदर समुद्रतट हैं। विषुवत रेखा के समीप होने के कारण यहां संवहनी वर्षा होती है और यहां विषुवत रेखीय वनस्पति पायी जाती है।

ध्यान दें

  • दस डिग्री चैनल- लिटिल अंडमान और कार निकोबार के बीच
  • डंकन पैसेज - ग्रेट अंडमान और लिटिल अंडमान के बीच

लक्षद्वीप समूह (Lakshadweep Island Group)

  • लक्षद्वीप द्वीप समूह अरब सागर में मालाबार तट के समीप स्थित हैं।
  • ये द्वीप समूह मुख्यत: कोरल चट्टानों से बने हुए हैं।
  • कविरत्ति द्वीप समूह लक्षद्वीप समूह का प्रशासनिक मुख्यालय है।
  • इस समूह में मिनिकॉय सबसे बड़ा द्वीप है।
  • इस द्वीप समूह में ज्वारीय तट हैं जो असंगठित कंकड़, शिंगल्स, कॉब्लस और बोल्डर्स से बना है।
  • यह संपूर्ण द्वीप समूह दस डिग्री चैनल, उत्तर में अमिनी द्वीप और दक्षिण में कन्नूर द्वीप से विभाजित है।

ध्यान दें

  • नौ डिग्री चैनल- मिनिकॉय को शेष लक्षद्वीप से अलग करता हैं
  • आठ डिग्री चैनल- लक्षद्वीप समूह को मालदीव से अलग करता हैं

अन्य द्वीप समूह

  • न्यूमोर द्वीप- गंगा के मुंह पर बंगाल की खाड़ी में स्थित है।
  • पंबन द्वीप- श्रीलंका और भारत के बीच मैनर की खाड़ी में स्थित है।


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