ब्रिटिश काल के दौरान क्रांतिकारी आंदोलन

ब्रिटिश काल के दौरान क्रांतिकारी आंदोलन

 भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष कई ऐसे क्रांतिकारी आंदोलनों के साथ जुड़ा हुआ था जो देश के विभिन्न भागों से शुरु हुए। इस लेख में, हम उन सभी महत्वपूर्ण क्रांतिकारी आंदोलनों पर चर्चा करेंगे जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे UPSC, राज्‍य PCS आदि के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। 

 

ब्रिटिश काल के दौरान क्रांतिकारी आंदोलन

 

  • क्रांतिकारी वे लोग हैं जो जन आंदोलनों के माध्यम से भारत में ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने में विश्‍वास रखते थे।
  • वे सरकार के खिलाफ विद्रोह और यहां तक ​​कि सेना के कार्यों में हस्‍तक्षेप करना चाहते थे और विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए गुरिल्ला युद्ध (छापेमार आंदोलन) का उपयोग करते थे।
  • औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के लिए, उन्होंने खुलेआम विद्रोह, बगावत और क्रांति का प्रचार-प्रसार किया।
  • साहस और आत्म-बलिदान के माध्यम से, युवा क्रांतिकारी भारी संख्या में लोगों को प्रेरित करने में सक्षम हुए।

 

क्रांतिकारी आंदोलन

 

चाफेकर बंधु (1897)

  • यह 1857 के बाद एक ब्रिटिश अधिकारी की पहली राजनीतिक हत्या थी।
  • दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव चाफेकर ने प्लेग महामारी की विशेष समिति के अध्यक्ष डब्ल्यू.सी. रैंड पर गोली चलाई।
  • वे पुणे में प्लेग महामारी के दौरान अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचारों के खिलाफ थे।
  • महामारी के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए, सरकार ने भारतीयों को परेशान करना शुरू किया और उन पर अत्‍याचार किए।
  • चाफेकर बंधुओं को फांसी दे दी गई।

 

अलीपुर बम षड्यंत्र (1908)

  • डगलस किंग्सफोर्ड एक ब्रिटिश मुख्य न्‍यायाधीश था जो मुजफ्फरपुर में फेंके गए बम का लक्ष्‍य था।
  • हमले में उसके बजाय दो महिलाओं की मौत हो गई।
  • बम फेंकने वाले प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस में से प्रफुल्ल चक्की ने आत्महत्या कर ली जबकि बोस (18 वर्ष) को पकड़ लिया गया और मौत की सजा सुनाई।
  • इस मुकदमे में अरबिंदो घोष, बारिंद्र घोष, कन्‍हाई लाल दत्‍त और अनुशीलन समिति के 30 अन्य सदस्यों पर भी मुकदमा चलाया गया।

नोटअनुशीलन समिति अरबिंदो घोष और उनके भाई बरिंद्र घोष जैसे राष्‍ट्रवादियों के नेतृत्व में थी। समिति के सदस्य, ज्यादातर युवा छात्र थे जो सैन्य अभ्‍यास, मुक्केबाजी, तलवार चलाने और अन्य अभ्‍यासों में प्रशिक्षित थे।

 

कर्जन वायली की हत्या (1909)

  • 1 जुलाई 1909 की शाम को मदन लाल ढींगरा ने लंदन में उनकी हत्या कर दी।
  • मदन लाल ढींगरा का इंडिया हाउस से गहरा संबंध था।

नोटलंदन में इंडिया हाउस की स्‍थापना श्यामजी कृष्ण वर्मा और वी.डी. सावरकर ने की थी। न्‍यूयार्क में इंडिया हाउस की स्‍थापना बरकतुल्लाह और एस.एल. जोशी ने की थी।

 

हावड़ा गिरोह मुकदमा (1910)

  • कलकत्‍ता में निरीक्षक शमसुल आलम की हत्या के कारण अनुशीलन समिति के 47 बंगाली भारतीय राष्‍ट्रवादि‍यों की गिरफ्तारी और उन पर मुकदमा चलाया गया।
  • उन्होंने अनुशीलन समिति के क्रांतिकारी गिरोह को उजागर किया जो हत्या और अन्य डकैतियों से जुड़े थे।

 

दिल्ली लाहौर षड्यंत्र मामला (1912)

  • भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की हत्या का प्रयास किया गया।
  • ब्रिटिश राजधानी के कलकत्‍ता से दिल्ली स्थानांतरण के अवसर पर, वायसराय की गाड़ी पर एक बम फेंका गया था। जिसमें लॉर्ड हार्डिंग घायल हो गए और एक भारतीय मुलाज़ि‍म की मौत हो गई।
  • इसका नेतृत्व रास बिहारी बोस और सचिन चंद्र सान्याल ने किया था।

 

गदर आंदोलन (1913)

  • सन् 1907 में लाला हरदयाल ने गदर नामक एक साप्‍ताहिक पत्रिका शुरू की।
  • अधिक नेताओं के साथ उनके संपर्क ने सन् 1913 में उत्‍तरी अमेरिका में गदर पार्टी की स्‍थापना का नेतृत्‍व किया। इस आंदोलन की योजना भारतीय सैनिकों की वफादारी को कम करना, गुप्‍त समाज का गठन करना और ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या आदि थी।
  • यह आंदोलन कोमागाता मारू घटना के कारण तीव्र हो गया था।

नोट: कोमागाता मारू नामक एक जापानी जहाज में गदर पार्टी के कार्यकर्ता कनाडा के विभेदकारी अप्रवासी कानून को चुनौती देने के लिए कनाडा गए थे। वैंकूवर पहुंचने के बाद, उन्हें जहाज उतारने की अनुमति देने से मना कर दिया गया।

 

काकोरी कांड (1925)

  • उत्‍तर प्रदेश के काकोरी के समीप ट्रेन लूट का मामला।
  • इसका नेतृत्व हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के युवाओं ने किया जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाकुल्ला खान और अन्य शामिल थे।
  • हमला इस विश्‍वास के साथ किया गया था कि ट्रेन ब्रिटिश सरकार का खजाना ले जा रही थी।
  • 1924 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना कानपुर में सचिन सान्‍याल और जोगेश चंद्र चटर्जी ने की थी, जिसका उद्देश्य औपनिवेशिक सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए सशस्‍त्र क्रांति की योजना बनाना था।
  • सितंबर, 1928 में फिरोज शाह कोटला में एकत्रित हुए कई प्रमुख क्रांतिकारियों ने संघ के नाम में 'समाजवादी' जोड़कर एक नया संघ बनाया।
  • इसके दो रूप थे: भगत सिंह की अध्यक्षता वाला जन रूप और चंद्र शेखर आजाद के नेतृत्व वाला एक गुप्‍त रूप। इसके कार्यकर्ताओं ने राष्‍ट्र के राजनीतिक ढांचे के परिवर्तन और दृष्‍टि‍ मुक्‍त भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने पर ध्यान दिया।

 

चटगांव शस्‍त्रागार लूट (1930)

  • चटगांव (अब बांग्लादेश में) से पुलिस के शस्‍त्रागार और सहायक बलों के शस्‍त्रागार पर छापा मारने का प्रयास किया जा रहा है।
  • इसका नेतृत्व सूर्य सेन ने किया था और अन्य लोगों में लोकनाथ बाल, कल्पना दत्‍त, अंबिका चक्रवर्ती, सुबोध रॉय आदि शामिल थे, वे हथियारों को नहीं लूट पाए, लेकिन उन्‍होंने टेलीफोन और टेलीग्राफ के तार काट दिए।
  • छापे के बाद, सूर्य सेन ने पुलिस शस्‍त्रागार में भारतीय ध्वज फहराया।
  • सरकार अंडमान में कारावास, निर्वासन की सजा सुनाते हुए कई उपाय किए। सूर्य सेन को निर्दयता से प्रताड़ित किया गया और फांसी की सजा सुनाई गई।

 

सेंट्रल असेंबली बम कांड (1929) और लाहौर षड्यंत्र कांड (1931)

  • भगत सिंह, सुखदेव, आजाद और राजगुरु ने 1928 में जनरल सॉन्डर्स की हत्या करके लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया।
  • बटुकेश्‍वरदत्‍त और भगत सिंह ने जन सुरक्षा विधेयक और व्यापार विवाद विधेयक के पारित होने के खिलाफ सेंट्रल असेंबली में बम फेंका। बम फेंकने का उद्देश्‍य गतिविधियों को लोकप्रिय बनाना था।
  • उन्हें इस कार्य के लिए गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
  • भगत सिंह को जनरल सॉन्डर्स की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था; यह लाहौर षड्यंत्र कांड के नाम से जाना जाता था।
  • मुकदमे के बाद, मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई और
  • उसी वर्ष फरवरी में इलाहाबाद में पुलिस के साथ लड़ते हुए चंद्रशेखर आजाद की भी मौत हो गई। 

नोट: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु अन्य कैदियों के साथ जेल में कैदियों की बेहतर व्‍यवस्‍था की मांग के लिए भूख हड़ताल पर चले गए।

 

कमियां

  • वे छोटे गुप्‍त समाजों में संगठित थे, दमन का सामना नहीं कर सकते थे।
  • सामाजिक जन आधार का अभाव।
  • वे किसानों और श्रमिकों के संपर्क में नहीं थे क्योंकि वे मुख्य रूप से शहरी मध्यम वर्ग से थे।
  • उनके पास केंद्रीय नेतृत्व और आम योजना का अभाव था और अंग्रेजों ने उनके खिलाफ दमनकारी नीति का पालन किया।

 

महत्वपूर्ण क्रांतिकारी संगठन

संगठन का नाम

स्‍थापना वर्ष

प्रभावित क्षेत्र

संस्‍थापक/संबंधित सदस्‍य

अनुशीलन समिति

1902

बंगाल क्षेत्र

प्रोमोध मित्‍तर, जतीन्‍द्रनाथ बनर्जी, बरींद्र नाथ घोष और अन्‍य

युगान्‍तर पार्टी 

प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान सक्रिय

बंगाल क्षेत्र

अरबिंदो घोष, बरींद्र घोष और जतीन्द्रनाथ मुखर्जी या बाघा जतिन

मित्र मेला

1899

नासिक, बॉम्‍बे और पूना क्षेत्र

सावरकर और उनके भाई

अभिनव भारत/ यंग इंडिया सोसाइटी (मित्र मेला इसमें शामिल हो गया)

1904

नासिक, बॉम्‍बे और पूना क्षेत्र

सावरकर और उनके भाई

स्‍वदेशी बंधव समिति

1905

बंगाल क्षेत्र

अश्‍विनी कुमार दत्‍त

हिन्‍दुस्‍तान रिपब्‍लिकन एसोसिएशन (HRA)

1924

कानपुर

सचीन्‍द्र नाथ सान्‍याल, नरेंद्र मोहन सेन, प्रतुल गांगुली

हिन्‍दुस्‍तान सोशलिस्‍ट रिपब्‍लिकन एसोसिएशन आर्मी (HSRA)

1928

नई दिल्‍ली

चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव थापड़

भारत नौजवान सभा

1926

लाहौर

 भगत सिंह

इंडियन होम रूल सोसाइटी

1905

लंदन

श्‍यामजी कृष्‍ण वर्मा

गदर पार्टी

1913

अमेरिका और कनाडा (उत्‍तरी अमेरिका)

लाला हरदयाल

भारतीय स्‍वतंत्रता लीग

1907

कैलीफोर्निया (अमेरिका)

तारकनाथ दास

भारतीय स्‍वतंत्रता के लिए बर्लिन समिति

1915

बर्लिन

जर्मन विदेश कार्यालय की मदद से वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, भूपेंद्रनाथ दत्त, लाला हरदयाल और अन्य

 



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