ब्रिटिश शासन के दौरान प्रेस का विकास

  

ब्रिटिश शासन के दौरान प्रेस का विकास

ब्रिटिश शासन के दौरान प्रेस का विकास

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय प्रेस का विकास अशिक्षा, औपनिवेशिक दबाव और दमन जैसी कठिनाइयों से भरा हुआ था। लेकिन बाद में यह स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक प्रमुख साधन बन गया था।

 

कुछ महत्वपूर्ण विकास निम्‍न हैं:

  • पहला प्रिंटिंग प्रेस वर्ष 1556 में पुर्तगालियों द्वारा स्थापित किया गया था।
  • भारत के पहले समाचार पत्र की स्थापना वर्ष 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिकी ने की थी, इस समाचार पत्र का नाम कलकता जनरल एडवाइजर अथवा द बंगाल गैजेट था। उन्हें 'भारतीय प्रेस का जनक' माना जाता है।
  • बंगाल गैजेट को हिकी गैजेट के रूप में भी जाना जाता है।
  • इस समाचार पत्र को बाद में सरकार द्वारा वर्ष 1782 में बंद कर दिया गया था।

 

सेंसरशिप अधिनियम1799:

  • इसे लॉर्ड वेलेस्ले द्वारा फ्रांसीसी द्वारा ब्रिटिशों को नुकसान पहुँचाने वाली अफवाहें फैलाने से रोकने के लिए अधिनियमित किया गया था।
  • इसके अनुसार, प्रत्येक समाचार पत्र में प्रिंटर, संपादक और मालिक का नाम होना चाहिए।
  • कुछ भी छापने से पहले इसे सेंसरशिप के सचिव के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

 

लाइसेंसीकरण विनियमन, 1823:

  • इसे जॉन एडम्स द्वारा अधिनियमित किया गया था।
  • प्रत्येक प्रकाशक को सरकार से लाइसेंस प्राप्‍त करना आवश्यक था।
  • डिफ़ॉल्ट के मामले में, 400 रूपए का जुर्माना था और सरकार द्वारा प्रेस को बंद कर दिया जाएगा।
  • सरकार के पास लाइसेंस को रद्द करने का भी अधिकार था।

 

नोट: ये प्रतिबंध मुख्य रूप से भारतीय भाषा के समाचार पत्रों या भारतीयों द्वारा संपादित किए गए समाचार पत्रों पर लगाए गए थे जैसे कि मिरात-उल-अकबर (जिसे राममोहन रॉय द्वारा प्रकाशित किया गया था) का प्रकाशन रोकना पड़ा था।

 

1835 का प्रेस अधिनियम अथवा मेटकाफ अधिनियम:

  • चार्ल्स मेटकाफ को भारतीय प्रेस का मुक्तिदाता भी कहा जाता था, इन्‍होंने जॉन एडम्स द्वारा प्रस्‍तावित 1823 के नियमों को निरस्त कर दिया था।
  • यह 1856 तक जारी रहा था जिससे भारत में समाचार पत्रों का विकास हुआ था।

 

लाइसेंसीकरण अधिनियम, 1857:

  • 1857 के विद्रोह के कारण हुए आपातकाल के कारण, सरकार ने 1835 के प्रेस अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया पर लाइसेंसीकरण निर्देश लागू किए थे।
  • सरकार ने पुस्तक, समाचार पत्र या मुद्रित जानकारी के प्रकाशन और प्रसार को रोकने का अधिकार भी सुरक्षित रखा था।

 

पंजीकरण अधिनियम, 1867:

  • इस अधिनियम ने 1835 के प्रेस अधिनियम या मेटकाफ अधिनियम को प्रतिस्थापित किया था।
  • यह विनियामक प्रकृति का था।
  • प्रत्येक समाचार पत्र/ पुस्तक में प्रकाशक का नाम, प्रकाशन का स्थान और मुद्रक का नाम होना चाहिए।
  • एक महीने के भीतर प्रकाशित सामग्री की एक प्रति स्थानीय सरकार को जमा करना अनिवार्य था।

 

वर्नाकुलर (मातृभाषा) प्रेस अधिनियम1878:

  • ब्रिटिश शासन की आलोचना करने के लिए वर्नाकुलर प्रेस (स्थानीय भाषा का प्रेस) इस्तेमाल किया गया था। इसलिए वर्ष 1878 में वर्नाकुलर प्रेस को बंद करने हेतु उन्‍होंने भरसक प्रयास किए थे।
  • इसे 'गैगिंग अधिनियम' का उपनाम दिया गया था।
  • इस अधिनियम हेतु लॉर्ड लिट्टन जिम्मेदार थे।
  • इसके अनुसार, देश में शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली किसी भी चीज़ को प्रकाशित न करने का आश्वासन देने के लिए समाचार पत्रों के किसी भी प्रकाशक से कहने का अधिकार मजिस्ट्रेट को प्राप्‍त था।
  • किसी भी विवाद की स्थिति में मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम था।
  • यह कानून अंग्रेजी प्रेसों पर लागू नहीं था।
  • इस अधिनियम ने सरकार को अदालत के आदेश के बिना भी सर्च वारंट जारी करने और समाचार पत्र परिसर में प्रवेश करने का अधिकार प्रदान किया था।

स्वतंत्रता आंदोलनों के तेज होने पर अधिक कठोर कानून बनाए गए थे। प्रत्‍येक रिपोर्टिंग पर कड़ी नजर रखी जा रही थी और सरकार विरोधी टिप्पणियों को बर्दाश्त नहीं किया जा रहा था।

  • इस अधिनियम अंतर्गत, वर्ष 1883 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की आलोचना करने के मामले में जेल जाने वाले पहले भारतीय पत्रकार सुरेन्द्रनाथ बनर्जी थे।
  • बालगंगाधर तिलक, प्रेस की स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रवादी लड़ाई से अधिकांशत: संबद्ध थे।
  • वह गणपति (1893) और शिवाजी (1896) त्योहारों और केसरी एवं मराठा समाचार पत्रों के माध्यम से राष्ट्रवादी भावना के निर्माण से संबंधित थे।

गैगिंग कानून को लॉर्ड रिपन ने वर्ष 1881 में निरस्त कर दिया था।

 

समाचार पत्र अधिनियम, 1908:

  • मजिस्ट्रेटों को समाचार पत्रों से संबंधित प्रिंटिंग प्रेस या संपत्ति को जब्त करने का अधिकार प्रदान किया गया था, जिसमें हत्या हेतु प्रोत्‍साहन या हिंसा के कृत्‍यों जैसी आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित की गई थी।
  • समाचार पत्रों को 15 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति प्रदान की गई थी।

 

भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910:

  • यह कदम उभरते हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए प्रभावी किया गया था, इसे विशेषकर प्रथम विश्व युद्ध की शुरूआत के दौरान प्रभावी किया गया था।
  • इसने स्थानीय सरकार को 500 रूपए से 2000 रुपये तक की जमानत राशि की मांग करने का अधिकार प्रदान किया था, जिसे ज़ब्त किया जा सकता था और कोई भी आपत्तिजनक सामग्री छापने के कारण उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता था।

 

प्रेस समिति, 1921:

  • तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में प्रेस समिति की सिफारिश पर प्रेस अधिनियम 1908 और 1910 को निरस्त कर दिया गया था।

 

भारतीय प्रेस (आपातकालीन शक्तियां) अधिनियम, 1931:

  • गांधीवादी आंदोलन के प्रभाव ने सरकार को वर्ष 1930 में एक अध्यादेश जारी करने के लिए उकसाया था।
  • प्रांतीय सरकारों को प्रेस का दमन करने की शक्ति प्रदान की गई थी।
  • वर्ष 1932 में अधिनियम के प्रावधानों को आपराधिक संशोधन अधिनियम के रूप में आगे बढ़ाया गया था।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूर्व सेंसरशिप को 1931 में प्रेस आपातिक अधिनियम और आधिकारिक रहस्य अधिनियम के अंतर्गत प्रबलित और संशोधित किया गया था।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत, कांग्रेस और उसकी गतिविधियों को अवैध घोषित किया गया था।

 

प्रेस विनियमन अधिनियम1942:

  • पत्रकार का पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया था।
  • नागरिक अव्‍यवस्‍था से संबंधित संदेश और तोड़फोड़ के कृत्यों के संदर्भ में समाचारों को प्रतिबंधित किया गया था।
  • अव्‍यवस्‍था पर समाचारों को दी गई सुर्खियों और छूट की सीमाएं थीं।
  • सरकार को विवेकाधीन सेंसरशिप का अधिकार प्राप्‍त था।

 

प्रेस जांच समिति, 1947:

  • इसे संविधानिक सभा द्वारा मौलिक अधिकारों के प्रकाश में प्रेस कानून की जांच करने के लिए गठित किया गया था।
  • इसने भारतीय आपातकालीन शक्ति अधिनियम, 1931 को निरस्त करने और अन्य अधिनियमों में संशोधन करने की सिफारिश की थी।

 

सेंसरशिप के पक्ष में: वेलेस्ले, लॉर्ड मिंटो II, लॉर्ड एडम्स, लॉर्ड कैनिंग, लॉर्ड लिट्टन, लॉर्ड एलफिंस्‍टॉन, सर मुनरो थे।

प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में: लॉर्ड हेस्टिंग्स, चार्ल्स मेटकाफ, मैकाले, रिपन थे।

 

समाचार पत्रों की सूची:

क्रमांक

समाचार पत्र का नाम

संस्‍थापक

1.

संबाद कौमदी (1821)

मिरात-उल-अकबर (1822)

राजा राम मोहन राय

2.

अमृत बाजार पत्रिका (1868)

शिशिर कुमार घोष और मोतीलाल घोष

3.

द हिंदू (1878)

जी.एस. अय्यर और वीरा राघव आचारियर

4.

केसरी और मराठा (1881)

बालगंगाधर तिलक

5.

स्‍वदेशमित्रम

जी. एस. अय्यर

6.

वंदेमातरम

अरबिंदो घोष

7.

सुधारक

गोपाल कृष्‍ण गोखले

8.

रस्‍तगोफ्तार (गुजराती भाषा में पहला) 1851

दादाभाई नैरोजी

9.

न्‍यू इंडिया (साप्‍ताहिक)

बिपिन चंद्र पाल

10.

न्‍यू इंडिया (प्रतिदिन)

कॉमनवील

एनी बेंसेट

11.

युगांतर (1906)

भूपेंद्र नाथ दत्‍त और बरिंदर कुमार घोष

12.

बॉम्‍बे क्रॉनिकल (1913)

फिरोजशाह मेहता

13.

हिंदुस्‍तान

मदन मोहन मालवीय

14.

मूकनायक

बी.आर. अंबेडकर

15.

इंडिपेंडेंट

मोतीलाल नेहरू

16.

पंजाबी

लाला लाजपत राय

17.

इंडियन मिरर

देंवेंद्र नाथ टैगोर

18.

यंग इंडिया

नव जीवन

हरिजन

महात्‍मा गांधी

19.

नेशनल हेराल्‍ड (1938)

जवाहर लाल नेहरू

20.

प्रबुद्ध भारत

उद्बोधव

स्‍वामी विवेकानंद


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